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Saturday, April 3, 2010

मत आओ तुम

तुम्हारा नहीं आना,
सालता रहा,
तुम्हारे आने की खबर से,
एक द्वन्द है,
आज आओगी,
तुमने नहीं बताया,
कोई बता रहा था,
आज सीढियां चढ़ते हुए,
मना रहा हूँ मैं,
काश! तुम न आओ,
क्यूंकि,
तुम्हारी कुर्सी के खालीपन में,
तुम्हारे न होने में,
लगता है की कुछ है,
कोई मेरा है,
जो यहाँ नहीं है,
तुम्हारे आने से,
मेरा भ्रम टूट जायेगा...

Friday, April 2, 2010

मौन यात्रा ( on the death of Kanu Sanyal)

भूख से रुसन चिराग
भुझा नहीं आंधियों में
हमराही बदलते गए, बीछ्रते गए, भटकते गए,
वो चलता गया,
अडिग, अथक,
पर थका जब समेत अपना सामान,
यूँ वो साढ़े मौन गया,
कोई न जान पाया ,
कौन था अवि, आज कौन गया ....