सर्द हवा ने पत्तों को चूमा जब ,
हुई ऐसी सनसनाहट
कान गुदगुदा उठे लगा जैसे
हो तुम्हारी आहट।
ये ठंडी हवा कुछ गुनगुनायी
फीर हमसे यूँ टकराई वो ,
लगा जैसे तुम्हारी गीली जुल्फों
को चुकार आई हो
इन बहती हवाओं में
खुसबू उमर रही थी ऐसे
वो खुसबू में डूबा कोई ख़त,
पढ़ रही हो जैसे।
तभी बरस परा आसमान
मेरी आँखों के जैसा
कुचला गया वो समां
मेरी जसज्बतों के जैसा
याद आई वो जगती रातें
गुजारी थी हमने जो रो रो के
दील से आह निकली अचानक
की काश तुम बेवफा न होते .....
Wednesday, March 31, 2010
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