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Saturday, July 3, 2010

एक इ-मेल

पिछले दिनों तुम्हे एक मेल किया था,
आज फिर कर रही  हूँ,
पिछले मेल का जवाब नहीं आया,
रोज एक आस के साथ,
मेल देखती थी ,
की तुम्हारा जवाब होगा,
'इन्बोक्स' खुलते ही उम्मीद ढह जाती थी,
एहसास वही होता जैसे प्रेम के
तूफान के शांत होने पर होता है,
पर शायद इस 'लॉग इन' से,
'इन्बोक्स' के खुलने के सफ़र में,
इस प्रेम के चरम तक पहुचने के पहले के, 'फॉर प्ले' में,
मजा आने लगा है,
इन दस दिनों में जवाब की उम्मीद जा रही थी,
इसलिए आज फिर मेल कर रही हूँ,
तुम्हारा जवाब नहीं, जवाब की,
आश को पाने के लिए.................